Wednesday, January 30, 2019

अयोध्या मुद्दे पर आख़िर बीजेपी चाहती क्या है- नज़रिया

मोदी सरकार पर उसके समर्थकों, विशेषकर विश्व हिन्दू परिषद और संघ परिवार का ज़बरदस्त दबाव है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले किसी भी तरह अयोध्या के विवादित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद स्थान पर मंदिर निर्माण का काम शुरू हो जाए.

साधु संतों के अलावा स्वयं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने खुलकर मांग की है कि मोदी सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में क़ानून बनाए अथवा अध्यादेश लाए.

यह दबाव और मांग इसलिए है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान स्वयं मोदी एवं बीजेपी नेताओं ने सरकार बनने पर मंदिर निर्माण का वादा किया था.

अब तो दिल्ली से लेकर लखनऊ तक दोनों जगह बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार है.

लेकिन मोदी सरकार ने साढ़े चार सालों में न तो पक्षकारों के बीच समझौता कराने की कोशिश की और न सुप्रीम कोर्ट में लंबित अपील को जल्दी निबटाने का प्रयास किया.

अब कार्यकाल समाप्ति की ओर है और दोबारा वापसी की गारंटी नहीं दिख रही, इसलिए मंदिर समर्थकों की बेचैनी समझ में आती है.

लेकिन क़ानून के जानकार जानते हैं कि अदालत में लंबित मुक़दमों के विषय में सरकार किसी एक के पक्ष में क़ानून नहीं बना सकती .

इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने संघ प्रमुख और अन्य मंदिर समर्थकों को सार्वजनिक तौर पर जवाब दिया कि सरकार अदालती प्रक्रिया के दौरान हस्तक्षेप नहीं कर सकती.

हॉं, अदालत का अंतिम निर्णय आने के बाद ज़रूरी क़दम उठा सकती है.

स्वाभाविक था कि इस बयान से मंदिर समर्थकों को निराशा हुई जिसकी प्रतिक्रिया प्रयागराज कुंभ में देखने को मिल रही है.

खुलकर नारे लग रहे हैं कि मंदिर नहीं तो अगले चुनाव में वोट नहीं.

पिछले चुनाव में मात्र 31 फ़ीसदी वोट से मोदी सरकार बनी थी. वोटों में मामूली गिरावट भी बीजेपी के विपक्ष में बैठने का कारण बन सकती है.

समझा जाता है कि इसीलिए अपने समर्थकों को साधे रखने के लिए मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दाखिल की है कि अयोध्या में अधिग्रहित 67 एकड़ ज़मीन में से मूल विवादित ज़मीन से इतर फ़ालतू ज़मीन राम जन्म भूमि न्यास को वापस देने की अनुमति दी जाए.

कहां है ये ज़मीन
मूल विवादित भूमि वह है, जहाँ छह दिसंबर 1992 तक विवादित मस्जिद खड़ी थी. इसका रक़बा एक तिहाई एकड़ से भी कम है जिसे कोर एरिया कहा जाता है.

मस्जिद गिरने के बाद तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने एक क़ानून बनाकर हाईकोर्ट में चल रहे चारों मुक़दमे समाप्त कर दिए थे और अग़ल बग़ल की 67 एकड़ ज़मीन अधिग्रहित कर ली थी.

इतनी अधिक ज़मीन इसलिए अधिग्रहित की थी कि जो पक्ष अदालत से कोर एरिया जीते उसे रास्ता, पार्किंग व अन्य तीर्थ यात्री सुविधाएँ बनाने के लिए ज़मीन मिल जाए.

बाक़ी ज़मीन हारे हुए पक्ष को देने की व्यवस्था थी, जिससे हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों को संतुष्ट किया जा सके.

इस 67 एकड़ में वह 42 एकड़ ज़मीन भी शामिल है जो वर्ष 1991 में कल्याण सिंह सरकार ने एक रुपए सालाना की लीज़ पर राम जन्म भूमि न्यास को दी थी. बाक़ी ज़मीनें कई मंदिरों और व्यक्तियों की थीं.

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याद दिला दें कि यह 42 एकड़ ज़मीन इंदिरा गॉंधी की इच्छानुसार कांग्रेस की वीर बहादुर सरकार ने मस्जिद के बग़ल में राम कथा पार्क बनवाने के लिए अधिग्रहित की थी.

तत्कालीन सरकार ने संवैधानिक प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट से राय मॉंगी थी कि क्या विवादित भूमि पर पहले कोई मंदिर स्थित था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रश्न का जवाब देने से इनकार कर दिया, साथ ही हाईकोर्ट में चल रहे चारों मुक़दमे जीवित कर दिए, जिससे अपील का मौलिक अधिकार समाप्त न हो.

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1994 में अधिग्रहण क़ानून को वैध ठहराया था. साथ ही यह भी कहा था कि क़ानून के मुताबिक़ ज़मीन का उपयोग यानि मंदिर-मस्जिद रास्ता, पार्किंग और यात्री सुविधाओं के बाद जो फ़ालतू ज़मीन बचे उसे उसके मूल मालिकों को वापस किया जा सकता है.

यानी यह प्रक्रिया विवाद के संपूर्ण समाधान के बाद होगी. अदालत ने तब तक यथास्थिति बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को कस्टोडियन बना दिया था. इसी व्यवस्था में कमिश्नर फ़ैज़ाबाद उस ज़मीन के रिसीवर हैं.

इससे पहले वर्ष 2002 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी तब भी मंदिर निर्माण शुरू करने के लिए कुछ ज़मीन देने के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने आंदोलन किया था.

तब वीएचपी अधिग्रहित क्षेत्र में सांकेतिक शिला पूजन करना चाहती थी. किन सुप्रीम कोर्ट ने फिर से स्पष्ट किया कि सम्पूर्ण अधिग्रहित क्षेत्र का कोई हिस्सा विवाद के निबटारे तक किसी को नहीं दिया जा सकता.

तब बीजेपी सरकार ने ही अयोध्या में निषेधाज्ञा लगाकर फ़ोर्स के ज़रिए हज़ारों कार सेवकों को अयोध्या घुसने से रोक दिया था.

Tuesday, January 22, 2019

विपक्षी दलों का महागठबंधन: ये रिश्ता क्या कहलाता है?

राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, इसकी झलक कोलकाता में शनिवार को एक बार फिर दिखी.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की नेता ममता बैनर्जी के निमंत्रण पर जुटे विपक्षी दलों के नेताओं ने एक सुर में कहा कि वे "मोदी से देश को बचाने के लिए एकजुट" हुए हैं, लेकिन ग़ौर से देखने पर पता चलता है कि यह गठबंधन नहीं, कुछ और ही है.

यह गठबंधन इसलिए नहीं है क्योंकि ज़्यादातर राज्यों में ये दल मिलकर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन इसे नाम दिया जा रहा है महागठबंधन का. यह दरअसल उन क्षेत्रीय दलों का एक समूह है जो 2019 में बीजेपी को बहुमत न मिलने की हालत में साझा सरकार बनाने की जुगत में है, यानी अगर कोई गठबंधन हुआ तो वो चुनाव नतीजे आने के बाद होगा.

'जिसकी जितनी ताकत, सत्ता में उसकी उतनी हिस्सेदारी' के हिसाब से 2019 नतीजे आने के बाद बीजेपी विरोधी सरकार बनाने की कोशिश होगी, तो ऐसे में मिलकर लड़ने के लिए सीटों के बँटवारे का समझौता कैसे हो पाएगा, कोई भी पार्टी कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है.

भारत ने बहुत सारे विचित्र गठबंधन देखे हैं लेकिन यह एक हाइब्रिड अलायंस है जिसका कोई नेता तो दूर, संयोजक भी नहीं है. सभी इस उम्मीद पर चुनाव लड़ रहे हैं कि वे किंग या किंगमेकर बनेंगे. असली राजनीति तो अभी शुरू ही नहीं हुई है.

मंच पर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर खड़े बीजेपी विरोधी नेता एकता की तस्वीर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनके आपसी टकराव, मनमुटाव और राजनीतिक होड़ की कहानियां किसी से छिपी नहीं हैं.

अगर बीजेपी के ख़िलाफ़ कोई सच्ची एकता होती तो हर संसदीय सीट पर बीजेपी के ख़िलाफ़ एक साझा उम्मीदवार उतारने का साहसिक फ़ैसला किया गया होता.

जहां इस अभूतपूर्व कही जा रही एकता का प्रदर्शन हुआ, वहीं से देखना शुरू करिए. यह कैसी 'मोदी विरोधी एकता' है जिसमें वामपंथी शामिल नहीं हैं, बंगाल में दशकों तक कम्युनिस्टों का राज रहा, लेकिन उनके लिए तय करना संभव नहीं हो पा रहा कि उनका बड़ा सियासी दुश्मन तृणमूल है या बीजेपी. यही वजह है कि वामपंथी 'यूनाइटेड इंडिया' में शामिल नहीं हुए.

42 संसदीय सीटों वाले पश्चिम बंगाल में जहां बीजेपी लगातार अपने पैर पसारने की कोशिश में जुटी है, लगभग तय है कि मुकाबला सीधा नहीं, बल्कि चौतरफ़ा होगा, लगभग इसलिए कि कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों या टीएमसी और कांग्रेस के बीच शायद कोई तालमेल हो जाए, मगर ऐसी कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है.

इसी तरह केरल में कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच किसी समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है, दोनों के बीच हमेशा से सीधी टक्कर होती रही है और अब बीजेपी वहां पैठ बनाने की कोशिश कर रही है.

ममता बैनर्जी के इस आयोजन को लोग प्रधानमंत्री पद की उनकी संभावित दावेदारी से जोड़कर देख रहे हैं. हाथ से हाथ मिलाकर खिंचाई गई तस्वीर में दो चेहरे नहीं दिखे, मायावती और राहुल गांधी, क्योंकि दोनों बीजेपी विरोधी गठबंधन की सरकार बनने की हालत में पीएम पद की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रतिनिधियों को भेजा ज़रूर था लेकिन शीर्ष नेताओं की ग़ैर-मौजूदगी के सियासी मायने हैं.

कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में भी विपक्षी दलों ने ग़ज़ब की एकता दिखाई थी, मायावती और सोनिया ने कैसे गलबहियां डालकर फोटो खिंचाई थी, लेकिन उत्तर प्रदेश में सीटों के बँटवारे के मामले में वह एकता लापता हो गई, कांग्रेस सपा-बसपा के गठबंधन से बाहर है.

पढ़ेंः क्या दिल्ली और पंजाब में 'आप' का अस्तित्व दाँव पर है?- नज़रिया

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल यूनाइटेड इंडिया के मंच पर मौजूद थे. दो ही दिन पहले कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच किसी तरह के गठबंधन की संभावना खत्म हो गई थी, जब दोनों पार्टियों ने इससे साफ़ इनकार कर दिया. ऐसा ही पंजाब और हरियाणा में भी होगा, जहां कांग्रेस और आप साथ आ सकते थे, लेकिन नहीं आएंगे.

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुल मिलाकर 42 संसदीय सीटें हैं, तेलंगाना का विधानसभा चुनाव कांग्रेस और तेलुगु देसम (टीडीपी) मिलकर लड़े थे और बुरी तरह हारे थे. लोकसभा चुनाव में सीटों के बँटवारे का कोई समझौता इन दोनों राज्यों में होता नहीं दिख रहा.

ममता बैनर्जी के मंच पर टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू तो थे, लेकिन विपक्षी एकता के एजेंडे के साथ ममता से कई बार मुलाकात कर चुके तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नेता चंद्रशेखर राव इस आयोजन से दूर ही रहे.

विपक्षी एकता की बात हवा-हवाई है, इसे आप 20 संसदीय सीटों वाले राज्य ओडिशा से भी समझ सकते हैं जहां कांग्रेस और बीजू जनता दल (बीजेडी) अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे.

Friday, January 18, 2019

बाइजू ने अमेरिकी फर्म ओस्मो को 850 करोड़ रु में खरीदा, विदेशों में बिजनेस बढ़ाएगी

ऑनलाइन एजुकेशन स्टार्टअप कंपनी बाइजू (BYJU) ने यूएस बेस्ड फर्म ओस्मो को 850 करोड़ रुपए (12 करोड़ डॉलर) में खरीद लिया है। बाइजू ने गुरुवार को यह जानकारी दी। ओस्मो खेल के दौरान बच्चों को सिखाने के सिस्टम तैयार करती है। यह डिजिटल के दौर में बच्चों को खिलौनों से जोड़ने पर फोकस करती है। 

ओस्मो की टीम में बदलाव नहीं होगा
ओस्मो अलग ब्रांड बना रहेगा। बाइजू इसकी फिजिकल-टू-डिजिटल टेक्नोलॉजी और कंटेंट का इस्तेमाल करेगी। ओस्मो के सीईओ और को-फाउंडर प्रमोद शर्मा और उनकी टीम काम करती रहेगी।

बाइजू का कहना है कि ओस्मो को खरीदने से उसकी अंतरराष्ट्रीय योजना मजबूत होगी। वह बच्चों को सिखाने के ज्यादा बेहतर और रोचक तरीके उपलब्ध करवाने पर जोर देगी। बाइजू का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से विस्तार करने की योजना है। कंपनी टेक्नोलॉजी के जरिए लर्निंग पर बड़े निवेश करती रहेगी।

बाइजू की शुरुआत 3 साल पहले 2015 में हुई थी। यह ऐप के जरिए तीसरी से 12वीं कक्षा तक के छात्रों को एजुकेशन सर्विस देती है। इससे 3 करोड़ छात्र जुड़े हुए हैं। इनमें से 20 लाख ने सालाना पेड सब्सक्रिप्शन ले रखा है।

बाइजू ने 3 विदेशी निवेशकों से 3,890 करोड़ रुपए का निवेश जुटाया है। इस फंडिंग से कंपनी का वैल्यूएशन 25,920 करोड़ रुपए हो गया है। इस लिहाज से यह देश की 5वीं सबसे ज्यादा वैल्यू वाली स्टार्टअप बन गई है। कंपनी ने पिछले दिनों विदेशी फंडिंग की जानकारी दी थी। कंपनी के फाउंडर और सीईओ बाइजू रवींद्रन ने कहा था कि निवेश की रकम का इस्तेमाल नए प्रोडक्ट लॉन्च करने दूसरे देशों में बिजनेस बढ़ाने में किया जाएगा।

पेट्रोल के रेट में शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन और डीजल के रेट में लगातार 9वें दिन इजाफा हुआ। दिल्ली में पेट्रोल 8 पैसे महंगा होकर 70.55 रुपए प्रति लीटर हो गया। मुंबई में यह 7 पैसे बढ़कर 76.18 रुपए हो गया। इन शहरों में डीजल की कीतमों में 19 से 20 पैसे का इजाफा हुआ। 

तेल कंपनियां 10 जनवरी से लगातार कीमतें बढ़ा रही हैं। इस दौरान सिर्फ पेट्रोल की कीमतों में सिर्फ 1 दिन (बुधवार) मामूली कमी आई थी। 
9 दिनों (10-18 जनवरी) में दिल्ली में डीजल 2.73 रुपए और मुंबई में 2.90 रुपए महंगा हो चुका है। तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव और डॉलर-रुपए के एक्सचेंज रेट के हिसाब से कीमतें तय करती हैं।

Thursday, January 10, 2019

इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या का आरोपी शिखर अग्रवाल गिरफ्तार

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुई हिंसा में पुलिस को बड़ी सफलता मिली है. पुलिस ने हिंसा के मुख्य आरोपी शिखर अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया है. शिखर अग्रवाल की गिरफ्तारी हापुड़ से हुई है. बता दें कि बुलंदशहर में 3 दिसंबर को कथित गो हत्या की घटना को लेकर हिंसा भड़की थी. हिंसा के बाद से वह फरार था. इस पर शहीद अफ़सर की हत्या का केस दर्ज है.

शिखर अग्रवाल की गिरफ्तारी हिंसा की घटना के 1 महीने बाद हुई है. भीड़ द्वारा हिंसा की इस घटना में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी गई थी. हिंसा के बाद शिखर अग्रवाल का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें वह उंगली उठाकर खुद को बेगुनाह बता रहा था. वीडियो में वह सुबोध कुमार सिंह के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए दिखा था.  

क्या कहा था वीडियो में

वीडियो में उसने कहा कि- "मेरा ही नाम शिखर अग्रवाल है. मैं बीजेपी युवा मोर्चा का नगर अध्यक्ष हूं. पुलिस, मीडिया ने घटना को तोड़-मरोड़कर पेश किया है. मैं Rightist supporter हूं. ऐसी पार्टियों को सपोर्ट करता हूं जो देश में गाय, गंगा और गायत्री को स्थापित करना चाहती हैं. मैं डॉक्टरी का छात्र हूं. BAMS अलीगढ़ से कर रहा हूं."

हत्यारोपी शिखर कह रहा है- "मैं जा रहा था. देखा गाय के अवशेष पड़े हैं. अवशेष ट्रॉली में लेकर चौकी जाने लगे. तभी सुबोध सिंह ने रोका. उपज़िलाधिकारी को बताया कि सुबोध ने धमकी दी है."

सिर लेकर थाने पहुंचे परिवार वाले

कांग्रेस ने हरियाणा की जींद विधानसभा सीट के उपचुनाव में पार्टी के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला को अपना उम्मीदवार बनाया है. सुरजेवाला इस समय कांग्रेस पार्टी के मीडिया प्रभारी हैं.

पार्टी महासचिव मुकुल वासनिक की ओर से जारी बयान के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सुरजेवाला की उम्मीदवारी को मंजूरी दी है. सुरजेवाला अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के प्रमुख होने के साथ ही वर्तमान में कैथल से विधायक भी हैं.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे जींद उपचुनाव को कांग्रेस नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है, इसलिए अपने एक बड़े चेहरे को मैदान में उतारने का फैसला किया.

गौरतलब है कि जींद सीट से विधायक हरिचंद मिड‌्ढा के निधन के बाद उपचुनाव हो रहा है. मिड‌्ढा ने इनेलो के टिकट पर 2014 का चुनाव जीता था. लंबी बीमारी के चलते पिछले साल अगस्त में उनका निधन हो गया था.

Thursday, January 3, 2019

BSNL का नया ऑफर, ऐसे मिल रहा है 2GB डेटा मुफ्त

सरकारी टेलीकॉम कंपनी BSNL एक मात्र कंपनी है जिसे प्राइवेट कंपनियों के डेटा वॉर से सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि अब ऐसा लग रहा है कि कंपनी इंडियन टेलीकॉम सेक्टर में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई कदम उठा रही है. कंपनी के पिछड़ने की सबसे मुख्य वजह 4G नेटवर्क का नहीं होना है. हालांकि अब कंपनी कुछ जगहों पर 4G नेटवर्क की टेस्टिंग कर रही है. अब BSNL 4G की जानकारियां लोगों तक पहुंचाने के लिए कंपनी सिम अपग्रेड करने पर फ्री डेटा दे रही है.

टेलीकॉमटॉक की खबर के मुताबिक, हाल ही में कंपनी ने चेन्नई सर्किल में 4G सिम कार्ड्स देना शुरू किया है. 4G सिम अपग्रेड ऑफर के तहत BSNL हर उस ग्राहक को 2GB डेटा मुफ्त में दे रही है जो 20 रुपये में 4G USIM कार्ड खरीद रहे हैं. BSNL 4G सेवाओं की शुरुआत गुजरात के गांधीधाम और अंजर जैसे शहरों में 26 नवंबर, 2018 से हो गई है. इसके बाद 3G नेटवर्क काम नहीं करेंगे हालांकि 2G नेटवर्क सभी हैंडसेट्स में काम करना जारी रहेंगे.

BSNL 4G USIM अपग्रेड

ग्राहक अपने मौजूदा 2G/3G सिम को 4G सिम में अपग्रेड कर सकते हैं और 4G सेवाओं को अनुभव कर सकते हैं. अगर आपके पास पुराना सिम कार्ड है तो आप 2G या 3G नेटवर्क को ही ऐक्सेस कर पाएंगे. इससे बचने के लिए आप इस एरिया में BSNL ऑफिस जा सकते हैं और एक BSNL 4G सिम कार्ड ले सकते हैं. साथ ही कंपनी की ओर से 4G सिम कार्ड में अपग्रेड करने वाले ग्राहकों को 2GB डेटा फ्री भी दिया जा रहा है.

पिछले कुछ महीनों से BSNL देश में अलग-अलग जगहों पर अपने 4G सर्विसेज की टेस्टिंग कर रही है. फिलहाल BSNL के 4G यूजर बेस की संख्या काफी सीमित है. कमर्शियल लॉन्चिंग की बात करें तो इसकी लॉन्चिंग 2019 की पहली छमाही में हो सकती है.

रिसर्चर ने कहा है कि अगर आप फेसबुक ऐप के लिए लोकेशन ऑफ कर लेते हैं फिर भी हर संभावित तरीके से फेसबुक आपकी लोकेशन ट्रैक करने की कोशिश में लगा रहता है. रिसर्चर ने कहा ऐसा इसलिए है क्योंकि फेसबुक का मॉडल विज्ञापन बेस्ड है और वो इसके लिए यूजर की प्राइवेसी को भी दांव पर लगा सकता है. ऐसा हाल के कुछ लीक और डेटा ब्रीच में भी पाया गया है.

यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैलिफोर्निया के कंप्यूटर साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर ऐलेक्जेंड्रा कोरोलोओ ने मीडियम पर इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है. यहां बताया गया है कि कैसे फेसबुक उनके लोकेशन पर आधारित टार्गेटेड विज्ञापन देता है, जबकि उन्होंने न तो प्रोफाइल में अपनी लोकेशन डीटेल्स डाली है और न ही लोकेशन ऑन किया है. इतना ही नहीं उन्होंने हर तरह संभव प्रयास किए जिससे लोकेशन शेयर न हो.

कोरोलोवा का कहना है कि उन्होंने फेसबुक ऐप में लोकेशन हिस्ट्री भी ऑफ कर लिया था और iOS की सेटिंग्स में भी उन्होने फेसबुक के लिए लोकेशन ऐक्सेस को डिसेबल कर लिया था. इसके अलावा उन्होंने ने अपने शहर और किसी भी तरह के लोकेशन टैग्ड फोटो और कॉन्टेंट फेसबुक प्रोफाइल पर नहीं अपलोड किया. इसे बावजूद लगातार उन्हें उनके घर और दफ्तर के लोकेशन के आधार पर विज्ञापन दिए गए. कोरोलोवा के मुताबिक फेसबुक पर दिया गया लोकेशन कंट्रोल एक भ्रम है और ये असल में ये कंट्रोल है ही नहीं.